क़ैद में रहना किसी को भी अच्छा नहीं लगता फिर चाहे वह क़ैद खुद के घर में रहने की मजबूरी के रूप में ही हो । और यह हुआ है वैश्विक महामारी कोरोना वाइरस (कोविड 19) के कारण सारी दुनियाँ में तालाबंदी के दौर में ।कोरोना से संक्रमित होने एवं इससे मरने वालों की संख्या दुनियाँ भर में तेजी से बढ़ी है। अच्छी खबर है इस महामारी से ठीक होने वालों की संख्या में भी लगातार बढ़ोत्तरी जारी है।
हालाँकि तालाबंदी से लोगों के सामने कई समस्याएँ मुँह फाड़े खड़ी हो गई हैं। काम-धंधे बंद हैं, जिससे लोगों के सामने आर्थिक संकट गहरा गया है। लोगों को भरपेट खाना भी नसीब नहीं हैं।भले ही सरकारें और ग़ैर सरकारी अन्य संगठन एवं व्यक्तिगत रूप से एक दूसरे की मदद के लिए भरसक प्रयास भी हो रहे हैं बावजूद इसके हर पेट को दो वक़्त का खाना नसीब हो ऐसी गारंटी भी किसी के पास नहीं है ।
ऐसे मुश्किल भरे क्रूर समय में कथित बड़े मीडिया हाउस एक अलग ही ढपली और अलग ही राग अलापने में जुटे हैं जिससे समाज का वह हिस्सा जो फ़ोन स्क्रीन पर या टी वी पर आपनी आँखें गढ़ाए सारा दिन काट रहा है । इसके प्रभाव में जहां वह वर्ग शाम होते-होते अनायास अपने मन में पनपती एक दूसरे के प्रति नफ़रत और निराशा के अवसाद में डूबते उतराते तय नहीं कर पा रहा होता कि मैं आख़िर परेशान क्यों हूँ ।
वहीं समाज का एक बड़ा हिस्सा मुश्किलों के इस दौर में भी एक दूसरे का सहारा बनकर हंसते हुए समय काट रहा है । उन गली-मुहल्लों में जहां जैविक रसद पहुँच पाने की न ज़्यादा उम्मीद है न ही बहुत प्रयास, वहाँ भी लोग सामाजिक दूरी का पालन करते हुए एक साथ समय बिता रहे हैं। एकदूसरे से अपनी समस्याएँ और अनुभव साझा कर रहे हैं। इतना ही नहीं लोगों ने समय काटने और इस विपत्ति से निपटने के लिए फ़ेसबुक और वाट्सएप से अलग मनोरंजन के नए-नए तरीक़े भी अपनाने शुरू कर दिए हैं। दशकों पहले विलुप्त हो चुके भारतीय खेल, इस संकट की घड़ी में उनके लिए संजीवनी का काम कर रहे हैं।
थाना यमुनापार स्थित सोनई टप्पा के मुकेश, जो सिलाई का काम करते थे लेकिन लॉकडाउन में काम एकदम बंद है वहीं राकेश जो ठेल लगाते थे, विष्णु कुमार जो बिजली का काम करते थे और कन्हैया लाल ने बताया कि वे मनोरंजन के लिए "चंगा पै" और "अठारह गोटी" जैसे खेल खेलते हैं। इनका कहना है कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि भविष्य में वह कभी अपने बचपन के खेलों को फिर से खेल पाएगें।
राकेश कहते हैं कि इनको खेलते हुए वे अपने बचपन मैं पहुँच जाते हैं और भूल जाते हैं कि वे दो बच्चों के पिता हैं। विष्णु बताते है कि सब के साथ खेलते हुए मैं भूल जाता हूँ कि तालाबंदी के बाद मुझे मज़दूरी कब और कैसे मिलेगी । वहीं कन्हैया लाल कहते हैं प्राइवेट नौकरी है उसका तो पता नहीं, रहेगी या नहीं लेकिन हमारे बच्चे जो फोन पर "पबजी" जैसे हिंसक खेल खेलते थे, वे भी " चंगा पै" और "अठारह गोटी" जैसे बौद्धिक खेलों में रुचि ले रहे हैं।
ऐसे में इन लोगों का मानना है कि इन खेलों से बच्चों में बौद्धिक विकास के साथ-साथ भाईचारे की भावना भी प्रबल होगी। और शायद वही ज़रूरी भी है जिससे आने वाले आर्थिक संकट में भी एक-दूसरे के सहारे से वे आशा के साथ खड़े रह सकेंगे ।