क़ोरोना का इतना डर कि ‘गर्मी में भी नहीं गर्मी का ऐहसास’


कोविड 19, वैश्विक महामारी के चलते लॉकडाउन के  वक्त में, हर व्यक्ति अपने घर में कैद होने को मजबूर है। इस महामारी ने पूरे विश्व में कोहराम मचा रखा है। वैश्विक पटल की महाशक्तियांभी इस महामारी के आगे घुटने टेकने को मजबूर हो गयी हैं । पूरा विश्व आर्थिक मंदी के बेहद खराब दौर से गुजर रहा है। संसार में लाखों लोग अपने रोजगार भी खो चुके हैं। ऐसे में भारत भी इस महामारी से अछूता नहीं है। जहां प्रतिदिन संख्या में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है वहीं इस बीमारी से ठीक होने वालों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है जो तसल्ली देती है ।


लॉकडाउन के अलावा इस महामारी से कैसे निजात मिल सकती है, हालाँकि वैक्सीन बनाने की दिशा में हो रहे प्रयास ही कुछ आशा की किरण की तरह नज़र आते हैं । जबकि ठीक इसी वक्त मेंअफ़वाहों ने इस इस बीमारी से पैदा डर के माहौल को कई गुना बढ़ा दिया है । और तो और इस काम में भारतीय मीडिया भी पीछे नहीं है । क़ोरोना संक्रमण से जूझने के अनेक प्रयासों के साथ सरकार इन अफ़वाहों पर पूरी तरह लगाम लगा पाने की बड़ी चुनौती से भी जूझ रही है । इन हालातों में अफ़वाहों पर खुद भी रोक लगाकर, लोगों को भी सरकार का सहयोग करने की बड़ी ज़िम्मेदारी को समझने की ज़रूरत है ।


ऐसी स्थिति में स्वयं को घरों में सुरक्षित रखना अपने आप में चुनौती भरा है जबकि भारत में यह समय सर्दी-जुक़ाम और मलेरिया के लिए खासा जाना जाता है। जबकि कोविड-19 के लक्षण भी कुछ ऐसे ही बाताए जा रहे हैं । जहां अप्रेल माह की गर्मी में लोग घरों में कूलर और ए सी के बिना नहीं रह सकते थे वहीं इस बार लोग अभी तक सिर्फ पंखों की हवा में ही अपने रात-दिन काट रहे हैं।धूल फांकते कूलर,ए सी जहां  के तहाँ रखे अपने आबाद होने का इंतजार कर रहे हैं | 


लक्ष्मी नगर में रहने वाले प्रमोद एक ट्रेवल पनी चलाते हैं।  इस समय लॉकडाउन की  वजह से घर में रहने को मजबूर हैं।जब उनसे पूछा गया कि अभी आपने अपने कूलर चालू नहीं किये तो बोले,  "कोरोना के डर से गर्म पानी पी-पीकर  बुरा हाल है आप कूलर, ए सी की बात करतीं हैं ।”


वहीं अपने दरवाजे पर उदास बैठे रविन्द्र सिंह कहते हैं , "लगता है इस बार की गर्मियां बिना कूलर के ही काटनी पड़ेंगी। घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं, मानते ही नहीं हैं। कभी धूप में छत पर भागते हैं तो कभी पंखे में । अब अगर कूलर चलाया तो इनको सर्दी,जुकाम,खांसी जरूर होगी । तब एक डर और, कि सब कुछ जानते हुए भी लोग जीना मुहाल कर देंगे । ऊपर से इस समय डॉक्टर्स की दुकानें भी बंद है। इसलिए चुपचाप अपने घर के भीतर पंखों से ही काम चला रहे हैं ।”


शहर के बीचों बीच भैंसबहोरा मुहल्ले में रहने वाली शालू वर्मा कहती हैं कि “डर इतना बढ़ गया है कि घर में किसी को एक छींक भी आ जाये, जो स्वाभाविक है लेकिन मारे डर के जान सी निकल जाती है। मम्मी तुरंत अदरक,काली मिर्च और लौंग की चाय पिला देती हैं। तो इस समय कूलर, एसी की तो बात ही न करो।”


वहीं एम एफ ए की पढ़ाई करने वाले अयान का मानना है कि “घर में रहकर भी स्वस्थ्य रहना, कोरोना को हराना है। इस साल बिना ए सी, कूलर के ही काटेंगे। अगर कूलर, ए सी न होते तो क्या हम इनके बिना नहीं रह रहे होते। जब पूरी दुनिया लॉक डाउन से गुज़र रही है तो क्या हम अपने साथ कूलर, ए सी का लॉक डाउन नहीं कर सकते हैं।”


पचपन साल के ट्रक ड्राइवर तेज सिंह कहते हैं कि “रात को छत पर सोता हूँ । दो-तीन घंटों तक तो मच्छर परेशान करते हैं लेकिन आधी रात के बाद कपड़ा ओढ़कर फर्राटे की नींद आती है। मन खुश हो जाता है। अब चल गए जि कूलर, ए सी , पहले सब खुले आसमान के नीचे ही सोते थे।”


पूरे विश्व के साथ देश भर में बढ़ते कोरोना के मरीजों की संख्या से कहीं ज़्यादा इसका ख़ौफ़ लोगों में व्याप्त हो गया है। इसके प्रति उनकी गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे घरों में बंद होने के बावजूद अपने को स्वस्थ्य रखना एक बड़ी चुनौती मानने लगे हैं ।जबकि इनके पास तमाम जरूरत की चीजों के अभाव भी हैं बावजूद इसके लोग इस विपत्ति की घड़ी में एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए तैयार हैं। यदि सरकारी तंत्र और मीडिया इसकी भयाभहता के बर-अक्स इंसानी हौसले और उनके द्वारा की जा रही सार्थक पहल की भी चर्चा करे ।